मेरा सतगुरु प्रगट होया
**** सतगुरु प्रगट होया ****
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मेरा सतगुरु प्रगट होया,
हमेश रहां गुरु च खोया।
जिस दिन दा उस लड़ लगया,
सारा दुख उस विच मोया।
मैं तां गुर संग प्रीत बनाई,
ओही मेरा मुरशद होया।
कोई नहीं जदों तारन वाला,
बख्शनहार अग्गे हां रोया।
कोई ना पूछदा हाल निमाणा,
बन्दा ही बन्दे दा वैरी होय।
गम दी घड़ी च हुंदा है कल्ला,
अपने पट दे रहन टोया।
धी पुत सारे झूठे ही रिश्ते,
राह च खुद कल्ला ही पाया।
मनसीरत जग तो है रजया,
सतगुरु दर थक खलोया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)