मेरा संपूर्ण महाभारत
संकल्प, विकल्प विचारों में मैं रोज गिरती- उठती हूं।
मैं प्रतिपल लड़ती हूँ ।
मेरा अर्जुन ( शुद्धतम रूप)खो गया।
बोले केशव मैं क्या करूं।
ना द्रौपदी चिर सखी
तेरी सौगंध खाती हूं
बाबा, भैया,तुझे कन्हैया कहती हूं।
केशव सब जानते तुम
नारी का सबसे शुद्ध तम स्वरूप बहन का
तेरे नाम पर जीती हूं
कलयुग में भगिनी ( बहन )को भूल गया है।
पुरुष अपना शुद्धतम स्व- रूप खो गया है।
आधुनिकता के नाम पर फुहड़ता दिखाता है।
बहन (बोलना) बनाना लज्जा माना जाता है।
मैं प्रतिपल लड़ती हूं।
संकल्प, विकल्प विचारों में मैं रोज गिरती -उठती हूं।
मेरा अर्जुन खो गया है।
बोलो केशव मैं क्या करूं।
ना द्रोपदी तेरी सखी,
,ना हास-परिहास होगा
पर मेरा सौभाग्य होगा।
रणनायक अर्जुन जब साथ होगा।
रथ तेरे हाथ होगा।
हे माधव ,हे केशव बस तेरा साथ चाहती हूं।
बेशर्त प्यार चाहती हूं।बस तेरा साथ चाहती हूं।
ना मैं योद्धा हूं ना मेरे पास कोई जत्था हैं।
सबसे कठिन अंतिम इच्छा
जगत में भी तेरा साथ चाहती हूं।
कोमल भाव रखती हूं।
तुझे मैं अपना भाई कहती हूं। _ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार
भागलपुर ,दिनांक-5-4-022मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।