मेरा श्रृंगार हो गईं ग़ज़लें
मेरा श्रृंगार हो गईं ग़ज़लें
तीज त्यौहार हो गईं ग़ज़लें
इनके बिन बेकरार रहती हूँ
मेरा तो प्यार हो गईं ग़ज़लें
बात करती हैं मन से ये मन की
मन का उपचार हो गईं ग़ज़लें
सौदा होने लगा है अब इनका
मीना बाज़ार हो गईं ग़ज़लें
दिल को कर बाग बाग जाती हैं
उनका रुख़सार हो गईं ग़ज़लें
आँधियाँ चल पड़ी हैं अब इनकी
कितनी बीमार हो गईं ग़ज़लें
मत समझ खुद को ‘अर्चना’ शायर
गर तेरी चार हो गईं ग़ज़लें
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद