मेरा वजूद
तुम कहते हो
मैं सोचना बंद कर दूं तो
सब कुछ ठीक हो जाएगा।
मगर तुम
नहीं जानते इस तरह तो
सृजन का अंत हो जाएगा।
मेरा दर्द
होगा नहीं कम ऐसे
घुटन का धुआं बढ़ता जाएगा।
सोचना एक
स्वाभाविक प्रक्रिया है
जिसे चाहकर भी न रोका जाएगा।
यदि रोका भी
तो जिंदा ना रहूंगी मैं
मेरा वजूद ही खत्म हो जाएगा।
इसलिए
शब्दों में जगमगाने दो मुझे
चहुॅं और उजाला हो जाएगा।
-प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर ( राजस्थान)