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21 Jul 2021 · 1 min read

मेरा वक़्त

हर दिन सोचती हूँ
होगा कुछ अलग
दिन मेरा
सवेर मेरी
पर आती हैं
मेरे हिस्से
सिर्फ़
रसोईघर की कहानियाँ
कड़ाइयाँ और कलछियाँ
खाने पकाने के क़िस्से
कुछ अनमने पल
चाय की प्याली
और कुछ पुलाव ख़्याली
सब अपनी मर्ज़ी का करने का
जी भर रोने और सोने का
पर न नींद आती है
न ही करार
भागदौड़ में भूल ही जाती हैं
सब मेरी जैसी औरतें
कि वक़्त हमारा
हमारे हिस्से में नही है
यह औरतों के क़िस्से
में ही नही है,
हाँ ! सच में…….

Language: Hindi
5 Likes · 8 Comments · 548 Views
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