मेरा मन क्यो भयभीत है
**मेरा मन क्यों भयभीत है**
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मेरा मन क्यों भयभीत है,
बेगानी सी लगे प्रीत है।
खामख्वाह क्यों भय छा रहा,
डर के आगे सदा जीत है।
गम का भार मुझे खा रहा,
नजर आता नहीं मनमीत है।
दुख में छोड़ दें साथ सभी,
जगत की अजीब सी रीत है।
सकल खुशियाँ कहाँ खो गई,
मन का कोई नहीं मीत है।
जो थे अपने हुए पराये,
परायों ने गाया गीत है।
भाई भाई का शत्रु हुआ,
युद्ध गृह का हुआ शीत है।
मनसीरत दिखता सहम सा,
यहाँ बजता नहीं संगीत है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)