✍️मेरा मकान भी मुरस्सा होता✍️
✍️मेरा मकान भी मुरस्सा होता✍️
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ये कहानी ना लिखते वो,यदि मैं भीड़ का हिस्सा होता।
ना कोई फ़साना ना अफ़साना ना कोई किस्सा होता।।
झूठ यहाँ महंगा बिकता सच का कोई खरीददार नही।
बेजुबाँ अवाम,बर्दाश्त की हद है,ना कोई गुस्सा होता।।
बस्स जैसा चल रहा वैसा ही चलने दो चलन भरने दो।
हो जाये जेब पूरी खाली फर्क नहीं उन्हें खास्सा होता।।
महंगे है सपने सस्ती है शराब,गम की कोई दवा नही।
अंग्रेजी ना सही,हाथ उसके अब,देसी का कस्सा होता।।
बिखरे है घर के साजो सामान ओर वो बैठा यूँही दूर।
कोई पास होता दिल के,मेरा भी मकान मुरस्सा होता।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
06/06/2022,