मेरा बजूद
मेरा बजूद
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में क्या हूं! जीवन में सहना ही,
मेरी अपनी कोई ख्वाइश नहीं,
देखती हूं सब अपनों की खुशी,
अपनी कोई खुशी नहीं।
में क्या हूं—–
बचपन से लेकर यौवन तक,
रहा सभी का आधिपत्य,
कब जियूं में अपनी जिंदगी!
हटेंगी कब ये बंदिशे।
में क्या हूं—-
हे!मेरा भी कोई बजूद है,
जो बनाऊं पहचान अपनी,
जीवन पथ में अग्रसर हो
मेरी सांसो के तार ये बोले,
हृदय का भी ये सपना है।
में क्या हूं——-
उड़ती हुई परिंदा हूं मैं,
बेड़ियों में मत जकड़ो,
खुले आसमान में उड़ने दो,
साथ दो सभी उसका सदा
उसको ऊंचाइयों को छूने दो।
में क्या हूं——
हौंसले उसके मत रोंदो,
उसके सपने पूरे हों—
होकर कामयाब उसको,
विश्व धरा पर झंडा फहराने दो,
उसको आगे पथ में बढ़ने दो
उसको मत टोंको ,मत रोको
पथ जीवन का अग्रसर करने दो,
में क्या हूं——
आखिर कब तक मौन रहूं में,
लड़ना। होगा अधिकार लिए–
पाना होगा मुकाम अपना,
तोड़ मौन की रेखाऐं।
में क्या हूं——
सुषमा सिंह *उर्मि,,