मेरा बचपन
देख अपने बेटे की शरारत
याद आई अपने बचपन की नज़ाकत
ऐसा ही मस्ती भरा कभी मेरा भी था बचपन
हू-ब-हू
वैसे ही खिलखिलाना
बेवजह मुस्कुराना, इतराना
बिल्कुल वैसे ही रूठना, तमकना
चलते-चलते मटकना
अप्रिय बातो पर झटकना
जब कुछ समझ न आए तो चमकना
भाई-बहन में लड़ना- झगड़ना
गलती करने पर मासूमियत दिखाना
सही रहने पर इठलाना
सब की सुनना पर अपने मन की करना
वही फ़साना रोज़ नया बहाना
खेलने जाना और देर से आना।
ना नही… सुनने की आदत अनजानी नही जानी पहचानी ….
बिलकुल लगता जैसे हो खानदानी।
जो सोच लिया वही है फ़रमाना
खाली पन्नो में नए नए रंग भरने की अपना ही मनमानी
तेरे बचपन से मिलती -जुलती
मस्ती भरी मेरी भी जिन्दगानी
मेरे भी बचपन की हू -ब-हू
यही है सम्पूर्ण कहानी।।
यादों के गलियारे से
झाँक रहा है मन बार -बार
बचपन का भोलापन
और वो अपना घर द्वार।
प्रस्तुति:
पवन ठाकुर “बमबम”
गुरुग्राम
दिनांक 16/04/2021
#सिंहवाड़ा