मेरा बचपन कविता
बचपन भोजपुरी कविता –इंसान कितना भी शहर के चकाचौध में मस्त हो जाए। परन्तु जो लोग गांव से जुड़े हैं, उन्हें गाँव की बहुतयाद आती है।मेरा बचपन भोजपुरी कविता मेरा बच्चपन गांव के उन सभी मौज मस्ती से जुड़ा है जो हमारे बच्चे नहीं कर पाते है।
गाँव की मिट्टी की खुशबू आज भी रुला देती है। हम बच्चों को बेसब्री से इंतजार रहता था कब शनिवार का स्कूल हाफ डे आयेगा और रविवार पूरे दिन की छुट्टी।
आम के बगिया में जाकर ओल्हा पाती खेलना।फिर टिकोरा की भुजिया बनाना। खूब आपस में बांटकर चटकारे ले खाना। शरबनिया के अमरूद के पेड़ से अमरूद चुराना । अपने घर के पीछे छूप कर खाना।
खेती के समय हेगा पर चढ़ना। घंटों हेगा पर मस्ती करना। पूरे दिन कभी नदी में नहाना, कभी पोखर में नहाना, मच्छली पकड़ना। अपने दोस्तो के बीच मस्ती। गाँव सच मे तुम्हारी बहुत याद आती है। आइए अपनी गाँव की यादे साझा करता हु
मेरा बचपन भोजपुरी कविता
वो निमिया के ठाँव वो पीपल का छांव ,
वो गन्ने की चोरी वो गोबर की होली |बारिश का पानी वो कागज की कश्ती
वो यारों की टोली और ढेरों मस्ती |
वो चकवा चकइया ,वो गुलि डंडे का खेल,
फलभर में तकरार ,और फलभर में मेल |
वो कौवा उड़ भैंस उड़, खेले हम साथ ,
जिसकी उड़ि भैंस, तो वो खाये दो चार हाथ |
कभी पोखर नहाएँ, कभी पकवा इनारबारिश का पानी वो कागज की कश्ती
वो यारों की टोली और ढेरों मस्ती |
वो चकवा चकइया ,वो गुलि डंडे का खेल,
फलभर में तकरार ,और फलभर में मेल |
वो कौवा उड़ भैंस उड़, खेले हम साथ ,
जिसकी उड़ि भैंस, तो वो खाये दो चार हाथ |
कभी पोखर नहाएँ, कभी पकवा इनारक
वो भी नहरी में कूदें ,कभी फाने दीवार |
वो मिट्टी का खिलौना, वो दीवारी(दिवाली ) का गाँव,
वो दिया की चोरी, बिहने दबे पाँव |
कहीं कोई ना देखे, ना जाने ना पावे ,
धीरे बोल भाई ,कोई सुने न पावे |
बनाया तराजू , सजाया दुकान ,
ऐ समर ऐ अमन , खरीदो सामान |
मेरे खेल का न, कोई मोल था ,
ना हेलीकाप्टर था, ना रिमोट कार था |
वो गर्मी की छुट्टी, वो नानी का गाँव ,
नाना की लाठी, वो बरगद का छाव |
जब याद आती है, बचपन तिहारे ,
अश्रु से भर आते, नैना हमारे |
मुझपर दया कर दो, हे पालन हारे ,
कोई लौटा दो बाबा, बचपन हमारे |
बहुत याद आता मेरा गाँव लेकिन अफसोस कभी जा नही पाता अपने गाँव 😥😥🥺