मेरा फलसफा
जिंदगी में जो मिला अपना होके रह गया।
दुश्मनी सीखी नहीं बस दोस्त बनके रह गया।।
आरजू के ना मुताविक ना गमों से वास्ता।
हासिल मुझे जो हुआ सब लूटा के रह गया।।
तन्हा चला था राह में लोग मिलते गए।
आसरा जिसने दिया मैं उसका होके रह गया ।।
गमजदों की भीड़ में क्या सुनाता में भला।
दुखड़ा उनका सुना तो दंग सुनके रह गया।।
दूरियां कुछ नप गईं जो थी अपने दरमियां।
नुक्स उसके दिल का कैसे छुपके रह गया।।
दौलतें दिल की हैं मेरी दिल ही मेरा यार है ।
जब हंसा तो हंस दिए कभी रुलाके रह गया।।
ख्वाहिशें पूरी हुई उस खुदा के मार्फत।
सामना उससे हुआ तो देखते ही रह गया।।
फलसफा किसको सुनाएं कौन सुनता है यहां।
रोज ही मैं जी रहा हूं रोज मरके रह गया ।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (एम पी)
9479611151