पहली बार कविता लिखने का अनुभव
बात उस जमाने की है जब मैं आठवीं कक्षा का छात्र था। एक दिन क्लास टीचर ने आकर बताया कि स्कूल की मैगज़ीन छपेगी। छात्रों को अपनी स्वरचित कविताएँ देनी है।
ये कहते ही उनकी नज़र हम दो तीन छात्रों पर पड़ी,उन्होंने बिन कहे ही समझा दिया कि क्या करना है।
औरों का तो पता नहीं पर मैं इस चुनौती को स्वीकार करने में हिचकिचा रहा था,पर कोई चारा भी नही था।
घर आकर , कॉपी और पेन निकाल कर गंभीर मुद्रा बना कर सोचता रहा।
मजाल है कि कोई भाव आ जाये। बार बार क्लास टीचर का चेहरा ही नज़र आ रहा था।मैं सोच रहा था कि परसों स्कूल जाऊंगा तो क्या होगा।
फिर सोचा चलो एक कोशिश और करते हैं।
पहले विषय तय कर लेते हैं।
कुछ शब्द दिमाग में तैरने लगे- देशभक्ति, छात्र जीवन, सादा जीवन्, प्रकृति ,वर्षाऋतु वगैरह वगैरह!
मैंने सोचा, चलो देशभक्ति पर केंद्रित करते हैं।
आंखे बंद करके सोचने लगा तो गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस की प्रभात फेरी दिमाग में थिरकने लगी और रेडियो पर बजने वाले देशभक्ति के गीत कानों में गूंजने लगे। बहुत जोर लगाया पर बात नहीं बनी।
कमोबेश, हर विषय पर सोचा पर नतीजा कुछ न निकला।
मेरी लेखनी दो चार कदम चलने के बाद आगे बढ़ने से इनकार कर देती।
दिमाग में कई विचार आ रहे थे फिर एक ग्यारहवीं की हिंदी की पुस्तक निकाल कर कुछ कविताओं पर सरसरी नजर दौड़ाई।
सोचा इसी में से कोई कविता नकल कर लेता हूँ।
पर इसमें पकड़े जाने का खतरा ज्यादा था और उसके दुष्परिणामों के बारे में सोचकर मैं सिहर उठा।
मेरी बैचैनी बढ़ती जा रही थी , स्वरचित कविता अब भी मेरी पकड़ से कोसों दूर थी।
विवश होकर मैंने कविता जमा करने की अंतिम तारीख तक स्कूल से अनुपस्थित होने का साहसिक निर्णय आखिरकार ले ही लिया।
अब मेरा ध्यान उन बहानों की ओर चल पड़ा जिसे सुनकर घरवाले मेरी बात मान जाएं।
मेरे दिमाग ने अब घर के सदस्यों की अनुमानित प्रतिक्रियाओं के बारे में सोचना शुरू कर दिया।
मैं अपनी दीदी के कमरे की ओर बढ़ गया और कहा आज पता नही क्यूं हल्का हल्का सर मे दर्द हो रहा है और टकटकी बांध कर उसके जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।
मैंने अपनी आगामी दो दिनों की योजनाओं पर कार्य करना शुरू कर दिया था।