मेरा पहला प्यार हास्य कविता
था एक अच्छा -खासा शहरी,
था अपना भी कुछ नाम।
फिर आया एक ऐसा दिन,
हो गया मैं बदनाम।
न जाने कौन सी घड़ी थी,
मिली थी जब वो मुझको।
सामने से आकर बोली,
मैं प्यार करती हूं तुझको।
मैं भी हो गया उसके प्यार
में बावलां,
क्योंकि मिल गया था
प्यार मेरा पहला।
उसकी अदाओं का ऐसा हुआ
मैं दिवाना,
लिखने लगा उसके नाम का
फसाना।
कर दिया था यही पर मैंने भूल,
क्योंकि उसे नही था मेरा प्यार
कबूल।
वो तो सिर्फ मुझसे खेल रही थी,
चोरी-चोरी मेरे पड़ोसी से
मिल रही थी।
देकर उसने मुझको धोखा,
कर लिया पड़ोसी के
साथ रोका।
कुछ दिन बाद हो गयी
उनकी शादी,
अब बढ़ा रहे है दोनों मिलकर देश की
आबादी।
(स्व रचित)…..…..आलोक पांडेय गरोठ वाला