मेरा नाम तेरे दिल से
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मेरा नाम तेरे दिल से, मिटा दी गई क्या
नफरत भरी कई नश्तर, चुभा दी गई क्या
मन में नफरत की तासीर बड़ी भारी है
हर चराग मोहब्बत की, बुझा दी गई क्या
लोग बन कर फरेबी खुदा बन गया देखो
आँखों पे काली पट्टी, लगा दी गई क्या
जब भी कदम बढाया लहुलुहान हो गये,
गुलों में छुपा के कांटे, बिछा दी गई क्या
लोग जज्बातों से खेलते यहाँ हर रोज
इन्सान की इन्सानियत, मिटा दी गई क्या
लौटा दो सोहबत बचपन की मेरे रकीब,
वो सुहानी – हँसी दौलत लुटा दी गई क्या
????—लक्ष्मी सिंह ?☺