मेरा दोस्त गुलाब
किसी बाग में
घूमने जायें और
गुलाब देखने को न मिले तो
फिर वहां देखा ही क्या
पाया ही क्या
घर से उठकर बाग तक
गये भी और
फूलों के बीच महकता
खिलखिलाता
भीनी भीनी सुगन्ध फैलाता
गुलाब न मिला तो
फिर क्या मिला
मेरा तो वहां जाना
बेकार सिद्ध हुआ
कल तक तो वहां
गुलाब थे पर
आज नहीं
लगता है कोई उन्हें
तोड़कर ले गया
मुर्झाकर तो जमीन पर गिरे
उनके अवशेष भी मुझे कहीं नहीं
मिले
क्यों तोड़कर इतनी बेरहमी से
लोग ले जाते हैं इन्हें कि
यह किसी से अपने दिल की
व्यथा भी कह सकते नहीं
लेकिन मैं कोई राजा नहीं कि
बाग के माली पर या
आम जनता पर मेरा
कोई बस चले
जैसे मेरा दोस्त
मेरा हमदर्द
मेरा हमराज
इस बाग का गुलाब
मजबूर है
वैसे ही काफी हद तक मैं भी
मजबूर हूं
हम दोनों को
इस दुनिया में रहने के
लिए
समझौते तो हर कदम पर
करने होंगे लेकिन
मैं रोज इस बाग में
सैर करने के लिए
आता रहूंगा
रोज खड़ा होकर
निहारूंगा
गुलाब के बिना
स्वाभिमान से अभी भी खड़े
गुलाब के पौधों को
इंतजार करूंगा मैं
इनपर आने वाली कलियों की
आशा करता हूं कि
बहुत जल्द मैं
फिर से देखूंगा
अपने इन गुलाब के पौधों को
गुलाब के असंख्य फूलों से
लदा-फदा।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001