पेड़
पेड़ अब पेड़ नहीं रहा,
कभी वह पेड़ था, हरा-भरा था,
अनगिनत टहनियाँ, टहनियों पर पत्ते थे,
समयानुसार फल-फूल भी आते थे,
रंगबिरंगे चहचहाते पंछियों का बसेरा था,
आते-जाते राहगीरों का उसके तले डेरा था,
तब वह उपयोगी था, सबका प्यारा था,
वह सबका था, सब उसके थे,
समय बदला, रुत बदली, दुनिया बदल गयी,
पतझड़ में पत्ते झड़ गये, टहनियाँ सूनी हुईं,
फल-फूल यहाँ-वहाँ जाने कहाँ-कहाँ बिखर गये,
रह गया केवल एक तना ठूँठ, कोई छाँव पाता नहीं,
खत्म हुई उपयोगिता, कोई तले अब आता-जाता नहीं।
रचनाकार – कंचन खन्ना, मुरादाबाद,
(उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक – ०२/०६/२०१९.