मेरा तकिया
सृष्टि की कोई रचना
बेजान नहीं होती
मैं और मेरा तकिया
रोज बातें करते हैं
जिसकी गोद सर रखकर
मैं दसों घंटे गुजारती हु
मेरे आत्मीय संवादों को
दिल से पहचानता है
बिना बोले ही वह
रोज बतिया लेता है
जब थकी हुई मैं
उसकी गोद में सर
रख कर सोती हूं
चुपके से थपकी देकर
गहरी नींद सुला देता है
जब मैं कहती हूं कि
अकेली दुखी और
थोड़ी परेशान हूं
तो मेरा अकेलापन भी
बांट लेता है
मेरे आंसू अपने में
जज़्ब कर लेता है
मेरा तकिया मुझे
रात अच्छी गुजरे
इसीलिए अपने
आगोश में सुला देता है
मेरा तकिया रोज रात
मुझसे बातें करता है
मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह