मेरा जीवन
अभावों में जन्म मिला है अभावों ने ही पाला है,
दुख है मेरी संचित पूंजी दुख ने मुझको ढाला है।
कांटों के कंटकित वैभव में यह जीवन प्रसून खिला, अश्रु काअक्षयअमरकोश विधना से मुझे उपहार मिला।
करुणा की धारा बहती इस करुणा कलित हृदय में
और धधकती प्राणों में मेरे विद्रोह की ज्वाला है।
अभावों में जन्म मिला है अभावों ने ही पाला है,
दुख है मेरी संचित पूंजी दुख ने मुझको ढाला है।
विपदाओं ने कदम-कदम पर आ मेरा सत्कार किया,
संघर्षों की ऑंधी ने इस जीवन का श्रृंगार किया।
संबंधों के सागर- मंथन में जो पाया मैंने बंधु,
अमृत का कोई चषक नहीं विष का ही एक प्याला है।
अभावों में जन्म मिला है अभावों ने ही पाला है,
दुख है मेरी संचित पूंजी दुख ने मुझको ढाला है।
जितना मैं दे सकती थी खुले हाथ से दान किया,
इतने पर भी जग रूठा औ’ मुझसे मिलकर मान किया।
मेरे विनम्र स्वभाव का खुलकर खरा अपमान किया,
चुप रह जिसका पान किया वह प्रलयंकारी हाला है।
अभावों में जन्म मिला है अभावों ने ही पाला है,
दुख है मेरी संचित पूंजी दुख ने मुझको ढाला है।
तूफां के संग खेली कूदी वे क्या अब डराएंगे,
गर वे मुझसे टकराए खुद सिर धुनकर पछताएंगे।
फूलों से भी कोमल निर्मल मेरा यह अंतर है पर,
मत भूलो मेरे फौलादी जज्बातों से पाला है।
अभावों में जन्म मिला है अभावों ने ही पाला है,
दुख है मेरी संचित पूंजी दुख ने मुझको ढाला है।
— प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर (राजस्थान)