[[[[मेरा जीवन मेरे ख्वाब]]]]
मेरा जीवन मेरे ख्वाब
// दिनेश एल०” जैहिंद”
अफसोस, रह गए मेरे ख़्वाब अधूरे !
दुखद ! मैं नहीं कर सका इनको पूरे !!
बचपन में बालमन मचलकर रह गया !
देख गुड्डे गैरों के मैं दहलकर रह गया !!
मेरी नरम आँखों ने बहुत आँसू बहाए !
खिलौनों बिना अपनों ने बहुत रुलाए !!
अभाव में मैं कभी खाने को तरस गया !
मन का करने को मुँह फुलाए रह गया !!
कभी रुपए दो रुपए के लिए रोते सोया !
कभी अठन्नी-चौवन्नी के लिए मैंने रोया !!
पहन न सका कभी मन माफिक कपड़े !
जब-जब माँगा सदन में हुए बड़े लफड़े !!
इन आँखों ने तो देखे बहुत सारे सपने !
ना हो सके उनमें से एक भी तो अपने !!
हुआ युवा तो मुझे एक लड़की भा गई !
हमेशा के लिए वो मेरे दिल पे छा गई !!
फूटा नसीब, टूटा ख्वाब जाने कहाँ गई !
आसमां निगल गया कि धरती खा गई !!
यहाँ भी आकर मेरा जवां दिल टूट गया !
जिसे भी चाहा कहीं ना कहीं छूट गया !!
ग़म का मारा मैं हर तरफ से छला गया !
लोगों की नज़रों से मैं हमेशा टला गया !!
टूटा दिल टूटकर दर्दो ग़म लिखने लगा !
उस्तादों की संगत में कुछ सीखने लगा !!
दोस्तों ने वाह-वाह कह मुझे चढ़ा दिया !
फिल्मलेखन के लिए मुझे उकसा दिया !!
खाक छानता रहा मैं तो बरसों मुम्बई में !
किसी ने भी न दिया काम मुझे चेन्नई में !!
अब घर बैठा मैं पापड़ बेलता रहता हूँ !
पापड़ बेलते-बेलते पत्नी की सहता हूँ !!
जीवन के यूँ रह गए सारे अधूरे सपने !
किसे सुनाऊँ कौन आएगा अब
सुनने?
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दिनेश एल० “जैहिंद”
01/01/2020