मेरा जन्म एक हादिसा
मेरा जन्म एक हादिसा
हाँ !! हादिसा ही होगा शायद
अगर हादिसा नहीं होता
तो क्यूँ मारते…
मुझे तुम कोख ही में
लेने देते मुझे भी जन्म
खुदा की बनाई इस काइनात में
जहाँ सुना है सभी बराबर है
तो दिखाने देते मुझे भी जौहर
अपनी क्षमताओं का ..
बिना मौक़ा दिए कैसे
आँक लिया तुमने ?
किमैं कमतर हूँ…..
शायद !! तुम में ही
हौसला नहीं होगा
मुक़ाबले का मुझसे
अगर, मैं कमतर होती
तो खुदा ने क्यूँ बख्शी होती
मुझे वो सिफ़त …
जिसे तुम ‘जननी’ कहते हो
क्यूँ बनाता वो सृष्टी की
रचना का सांझेदार मुझे
सोचो !! फिर भी कहते हो
मेरा जन्म एक हादिसा है