मेरा चित्र
धरा से लेकर अम्बर तक,
गांव से लेकर शहर तक,
बड़ा सुंदर है मेरा चित्र,
हर रंग में है मेरा मित्र,
समायी उसमें फूलो की कली,
मेरे बचपन की हर गली,
माँ की लोरियों की धुन,
तीज त्योहारों के हर गुन,
बड़ो का आदर सम्मान,
पशु पक्षी को देते मान,
छोटे छोटे हम थे कभी,
मिल बांटकर खाते थे सभी,
धूल से सने रहते थे हाथ,
फिर भी न छोड़ते थे साथ,
मित्रता का था ऐसा धागा,
कोई नही उससे कभी भागा,
पर आज….
ढूंढ रही आँखे हर मंदिर,
मिल जाये वो मोती सुंदर,
बिखर गए पर बंधे एक डोरी से,
यहाँ वहाँ देखे हर खोरी से,
गीत भी है कब से अधूरे,
कैसे हो बिन उनके पूरे,
कितनी यादें है जग के अंदर,
खोज रही उनको दर दर,
।।।जेपीएल।।।