मेरा गांव
छोटा सा है गांव मेरा
जहां बीता है बचपन मेरा
अब मैं वहां रहता नहीं
वहीं लगता है दिल मेरा।।
वो जो पगडंडियां जिनपर
बचपन में चलते थे हम कभी
सुना है सड़कें बिछ गई है
अब तो उन रास्तों पर सभी।।
वो पेड़ जिनपर झूला
लगाते थे हम
ना जाने कहां हो गए
है अब वो गुम
वो हिंसर के झाड़ भी
खो गए है कहीं
खाकर जिन्हें ही तृप्त
हो जाते थे हम।।
गाय जो पहले जाती थी
चरागाहों में हरी घास चरने
आज़ादी उसकी भी छिन गई है
वो भी अब खूंटे से बंध गई है।।
खेतों में गेंहू नहीं लहलहाते अब
ना ही मक्की के भुट्टे मिलते है
जहां तक नज़र जाती है मेरी
बस सेब के पेड़ ही दिखते है।।
खेलते थे जिन बंजर खेतों में
बच्चे गांव के सभी मिलकर
अब वो भी बंजर नहीं रहे
उसमें भी फूल खिल रहे ।।
चारों तरफ हरियाली है
है ऋतु बसंत जब से आई
लगता है ये समा मनोहर
जब से ये हरियाली छाई।।
जब छा जाती चारों ओर धुंध और
आसमानी बिजली नृत्य करती है
लगता है यहीं बन गया है स्वर्ग
देख साथ में खिलते गुलशन
लगता है मेरा गांव तो आज
धरती पर एक छोटा सा स्वर्ग।।