मेरा गांव
एक छोटी सी पगडंडी जाती है मेरे गांव को ।
जीवन का हर मोड़ देखती और संजोती ख्वाब को ।
छोटा सा प्यारा सा गांव था मेरा।
हर दिन लगता था जिसमें खुशियों का डेरा।
पीपल की छांव गाढ़ी, आमों का झूलना।
कोयल की कूक प्यारी, कैसे हो भूलना।
जीवन के हर पहलू से तालुक था मेरा।
दादी की छाछ गाढ़ी, गोचनी की रोटियां।
माखन औ चटनी, संग प्यार मिली रोटियां।
बाबा का प्यार देता स्वप्निल सवेरा
आज पुरानी यादों ने लाकर मुझको वहां छोड़ दिया
जहां चिड़िया के पोय का एकत्र मैंने ढेर किया ।
रेखा मान अंगूर उन्हें अपना दिल यूं शेर किया।