मेरा गांव
मेरा यार मेरा हमसफर हो गया,
पाँव रखा तो डगर हो गया।
कहां मिलती है मुफ्त की तालीमें,
मेरा गांव अब शहरदार हो गया।
अब पहले जैसी बात कहाँ,
वो मस्ती वाली रात कहाँ,
जमाना गुजर गया
तुम्हारे साथ आँख मिचौली खेलें,
यहाँ हर कोई नज़र का बीमार हो गया।
मेरा गांव अब शहरदार हो गया।
वक्त मिल नही पता,
खुद के आईने को मैं जी भरके देख लूं,
मैं शहर गया कामकाज हो गया।
जामुन की बगियाँ छूट गई
वो होंठो की लाली रूठ गई।
शर्मिंदा हूँ अपनी ख़ुददारी से,
मैं जमी से उठा तो आसमान हो गया।
मेरा गांव अब शहरदार हो गया।
मेरी बूढ़ी आँखे सहन न कर सकी
खून खराबे को,
मुझसे लौट जाना है गाँव
कभी न शहर आने को।
मैं भी ठहर गया था
उनके दम घुटने वाले महलो में,
जो शहर न जाने कितनों का
क़ातिलदर हो गया।
मेरा गांव अब शहरदार हो गया।
-Rishikant Rao Shikhare