मेरा गाँव
लोटा दो मुझे मेरा जो खो गया गांव कोई
खोया हुआ मेरा जो दिल का अरमान कोई
शहर की चकाचैंध में खो जो गया
आधुनिकता के बहाव में बह जो। गया
पश्चिमयता। का शिकार हो जो गया
भौतिकता की होड़ मे सिमट जो गया
टूटा टूटा हुआ सा मेरा अधूरा ख्वाब कोई
सरल सरस सहज जो पहरावा था
सच दिखता था सदा न दिखावा था
खान-पान,रहन-सहन सीधा सादा था
भाषा बोल वाणी मे मीठा रसीला था
हाव-भावों से भरा हुआ जज्बात कोई
चौराहे चोपाल जो महफिल सजती थी
बेगम यकों की जहाँ जो सीपें लगती थी
पनिहारी पनघट पर जो पानी भरती थी
सुन्दर छैल छबीली जो कतारें चलती थी
गुम जो हो गई कहीं वो प्यारी हँसी कोई
बैल जोड़ी में जुड़ी घंटिया जो बजती थी
सांझे चूल्हे पर कुटुम्ब जो रोटी पकती थी
सुख दुख दर्द जो निज संग साथ बंटते थे
खेत खलिहान कामों में जो हाथ बंटते थे
अतीत में खोई हुई वो रंगीन परछाई कोई
भोले भाले लोग जो बड़े अनुरागी बैरागी थे
निस्वार्थ सेवा भावना के जो बड़े आदि थे
प्रेम भवसागर में जो बहाते और बह जाते थे
पल में लड़ते थे जो पल भर में मिल जाते थे
वो जो प्रेम रंगलीन हसीन क्षण बिताए कोई
लोटा दो मुझे मेरा जो खो गया गाँव कोई
खोया हुआ मेरा जो दिल का अरमान कोई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत