मेरा गाँव मेरा बचपन
मेरा गांव मेरा बचपन
मेरे गाँव मे क्या भैसें
गाय , बेल की ही हलकार
यही है ,मेरी सरकार ।
गांव भोर में महकती दुग्ध ,छाछ ,दहिया
पनघट पर लाती थी पानी मेरी मैय्या ।
गुल्ली डंडा ,कलम डाल ,सितोलिया का खेल खेलता
मन्द मन्द मुस्काता शाम घर आता ।
आधी छुट्टी में माड़साब को बिन कह भाग जाता
ताल तलैया बावड़ी में तैरना नहाने का मजा कर आता ।
दो किताबें ही बार बार गिनती ही लिखकर बिताता,
ओर बस्ती में जाकर मक्की ही माँगकर लाता ।
कहीं कहीं तो गन्ने की चरखी पर जाता ,
और हम दोस्त, गुड़ का मिठास चख कर ले आता ।
ऐसा गाँव, प्यारा कहलाता
ऐसा बचपन अब इस शहर में कहां आता ।
अब तो तबादला ही किसी गाँव मे ही हो जाता
तो भी प्रवीण को कोई जीवन मे आंच न आता ।
✍प्रवीण शर्मा ताल
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