“मेरा गलत फैसला”
“मेरा गलत फैसला”
भोर सुबह सारे घूमने चलेंगे
कल शाम से ही था मन मेरा
शनिवार की रात सोए देर से
इतवार को था नींद का पहरा,
उठे देर से काम किया लेट हुए
चले तब समय हुआ दोपहर का
मीनू और बच्चे जाने को तैयार
राज का मूड नहीं था जाने का,
हम सबकी मनुहार से माने राज
बैठ कार में हम निकल पड़े बाहर
कहां जाएं कहां घूमे भरी दोपहर में
कुछ भी समझ नहीं आ रहा था,
जिधर देखो वहां तिमतिमाए सूरज
चिलचिलाती धूप व गर्मी का पहरा
अंत में जाकर एक उद्यान में बैठ गए
गर्मी से झुलस रहा था हर एक झूला,
बार बार पानी पीकर थोड़ी शांति मिले
धूल भरी आंधी ने फिर समा बिखेरा
कान पकड़ लिए दोपहर में नहीं घूमना
तपती किरणों से परेशान हमने पुकारा।