मेरा क्या कसूर
क्या कसूर मेरा जो मुझसे इतनी नफ़रत करती हो
बेटी हूं मैं.. इसीलिए क्या नहीं मोहब्बत करती हो।
मुझको भी तो नौ महीने ही अपने कोख में पाला था
अपने खून से सींचा मुझको नाज़ से देखा भाला था।
क्या तुझको बेटी से ज्यादा बेटा जग में प्यारा था
बेटे की ख्वाहिश में तूने तन मन जान ये वारा था।
कोमल कली को खिलने से पहले ही तूने तोड़ दिया
फेंक दिया कूड़े में मुझको तिल तिल मरने छोड़ दिया।
अभी ठीक से इस दुनियां में क़दम भी नहीं धर पाई
आंख खोलकर जग ना देखा किलकारी नहीं भर पाई।
क्या ऐसा करते मां तेरा नहीं कलेजा कांपा है
अपनी करनी पर तुझको क्या ज़रा नहीं पछतावा है।
बेटी होना इस दुनिया में मां क्यों पाप कहाता है
बेटी बोझ क्यों हो जाती है सर नीचा हो जाता है।
बेटी होने की मुझको क्यूं इतनी बड़ी सज़ा दी है
देकर जन्म मुझे तुमने अपने ही हाथ क़ज़ा दी है।
बेटी के पैदा होने पर क्यों तुझको इतना दुःख है
मां…. बेटी से संसार की खुशियां बेटी से सारा सुख है।
बेटी ना होगी तो कैसे ममता का सुख पाओगी
मां,भगिनी, भाभी या बहन या सखी कहो कहलाओगी।
बेटी ही रिश्तों की सारी कड़ियां पूरी करती है
जीवन की तस्वीर में बेटी ही सारे रंग भरती है।
“पिनाकी”
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित