मेरा कमरा
चार दीवार
एक छत
छत पर लटकता पंखा
एक रोशनदान
एक ही दरवाजा
एक ही बल्ब है, जलता हैं जो कुछ देर बाद
सूनी खूटियों पर टंगे हैं
कुछ कपड़े अस्त-व्यस्त
आलमारी में पड़ी ढेर सारी किताबें
मेज पर, कुछ बिस्तर पर
अस्त-व्यस्त हो बिखरे हैं
कागज के कतरन ढेर सारे
जा रहा अब लिखने ‘अनस’
अपने शब्दों को
इन रीते कागज पर….
उसी चिर-परीचित मुस्कान के साथ।