मेरा कमरा जानता है
मेरा कमरा जानता है……
मैं कितनी भी लापरवाह रहूं पर
हर चीज को करीने से ही रखूंगी
कमरे का कोना कोना
बड़े ही प्यार से सजाऊंगी
मेरा कमरा जानता है…..
कि मैंने न जाने कितनी सारी
यादों को संजो के रखा है
न जाने कितनी बातें सांझा की है
मेरा कमरा जानता है..…
मेरे बचपन की कितनी खट्टी मीठी बातें
न जाने कितनी रातें मां के प्यार
दुलार,लोरियों के बिना काटी है
मेरा कमरा जानता है कि
मैं कितना रोई थी मां के जाने के बाद
मेरा तकिया भी मेरे साथ रोता है हर पल
हर तरफ बस मां की यादें हैं
मेरा कमरा जानता है …..
वो दादाजी और दादीजी की प्यार भरी बातें
मेरी हर ज़िद को पूरा करना
मां मारती तो दादी डांटती दादा दुलार करते
मेरा कमरा जानता है …….
हम भाई बहनो का आपस का जुड़ाव
वो लड़ना झगड़ना फिर एक हो जाना
एकदूसरे की गलतियों को छुपा लेना
मेरा कमरा ही जानता है..…
कितने अकेले हो गए हैं हम और हमारा कमरा
बस जुड़ी है सारी बातें , यादें ,वादे ,कसमें, झगड़े ,लोरिया,त्योहार, पागलपन सब कुछ
मेरा कमरा ही जानता है ……
शकुंतला
अयोध्या (फैज़ाबाद)