*******मेरा एक छोटा सा व्यंग********
खुद को समर्पित करते हुए ??
सींच कर एक नन्हा
सा पौधा , मेरी कल्पना
में विराजमान हो गया
मैं उस पर अपना
हक़ जताने के लिए
खुद मेहरबान हो गया
वो मासूम सा, सोच
में पड़ गया, कि यह
आज खाद पानी
देकर, मुझ
पर मेहरबान हो गया
क्या इस ने पैदा किया
मुझ को जो मेरी
सारी खुशिओं
का यह तलबगार हो गया
उस ने ली अंगडाई
और वो मुरझाने लग
गया
मैने सोचा, कि अब
इस का दिन नजदीक
है आ गया
छोड़ के मैं उस को
किसी और घर जाकर
हक़
अपना जताने लग गया
पर वो समझा मेरी
फितरत और वो भी
अपने स्वाभाव में
बल खाने लग गया
और मुझ को याद
आई अपनी,तरफ
झाँका मैने
और बोला मन से
सब्र रख उतना की जितना दिया है ऊपर वाले ने
उस पर क्यूं हक़ जताता है यहाँ तू इस ज़माने में
रहने दे उस को अपनी छोटी सी खुशिओं के साथ
न परेशां कर आ आकर तूं अपने किसी बहाने से !!~
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ