“मेरा इश्क़”
ज़मीं हो या कहीं हो फलक।
इश्क़ में हद से गुज़र जाने की है ललक।
दरिया हो या कहीं हो समन्दर।
उसकी रूह समा गई है मेरे अन्दर।
फूलों की बस्ती हो या कहीं हो रेगिस्तान।
मोहब्बत के सिवा दूजा नहीं है मेरा माकाम।
ख़्वाब हो या हो हमारी हकीकत।
उससे बड़ी नहीं है कोई मेरी चाहत।
दास्तान हो या हो कोई फसाना।
उसका इश्क है मेरा सबसे बड़ा नज़राना।
काग़ज़ हो या हो कोई किताब।
उसकी आरज़ू में हर वक़्त रहते हैं बेताब।
समीर तेरा दिल हो या उसकी धड़कन।
उसके बिना नहीं लगता है कहीं भी मन।
तमन्ना हो या हों हमारी हसरतें।
प्यार हमारा मिटा देगा कई दिलों से नफरतें।