मेघ :– वरदान या अभिशाप
ए मेघ तू रह गया कहां,
तेरे आस में है कृषक खड़ा,
नद, ताल, पोखर सभी
तेरे बरसने की मांग रहे दुआ।
तुम आए तो कृषक को,
जैसे जन्नत मिल गई,
नद, ताल, पोखर सभी,
जलमग्न हो उठे।
खेत–खलियान खिल उठे,
चहूं ओर हरियाली छा गई,
पर जो तू जोरों से बरसा,
तो सारा जहां रोने लगा।
कृषक सोच पड़े,
क्यों मांगा तुझे सिद्धत से,
तू तो सब बर्बाद कर गया,
जैसे रूठ गया हो हमसे।
कोई समझ न पाया,
तेरी मस्तिष्क में क्या है,
तू वरदान भी न रहा,
अभिशाप भी न रहा।