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1 Sep 2021 · 1 min read

मेघ मही प्रीति

दिल लगा मेघ का मही से
प्यार बरसा उस पर इतना
बरस भिगो दिया धरा को
भीगी धरा सकुचाती

बादल बरसा इतना कि
सराबोर करे वसुधा को
बादल क्षिति की प्रीति ऐसी
हर रोज बरस भिगोये धरा को
धरा प्रीत डगे बढाती

रिमझिम अपनी बूँदों से
करता स्पर्श अपने करो से
भीग आलिंगन बँध जाती
अर्पण अपना कर जाती
मही उसे अपना बनाती

सूख रही धरा चैत मास से
अनुबंध करे प्रिय खास से
आ मुझे बाँध लो बाहुपाश
बुझा दो तुम मन की प्यास
धरा अपनी प्यास बुझाती

Language: Hindi
80 Likes · 416 Views
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