मेघ मही प्रीति
दिल लगा मेघ का मही से
प्यार बरसा उस पर इतना
बरस भिगो दिया धरा को
भीगी धरा सकुचाती
बादल बरसा इतना कि
सराबोर करे वसुधा को
बादल क्षिति की प्रीति ऐसी
हर रोज बरस भिगोये धरा को
धरा प्रीत डगे बढाती
रिमझिम अपनी बूँदों से
करता स्पर्श अपने करो से
भीग आलिंगन बँध जाती
अर्पण अपना कर जाती
मही उसे अपना बनाती
सूख रही धरा चैत मास से
अनुबंध करे प्रिय खास से
आ मुझे बाँध लो बाहुपाश
बुझा दो तुम मन की प्यास
धरा अपनी प्यास बुझाती