मेघ बरसते हैं आँगन में
मेघ बरसते हैं आँगन में, तरुवर पर कोयल गाती है।
माटी की सोंधी ख़ुशबू, बचपन की याद दिलाती है।
बिना किसी संकोच के, बरखा में नहाया करते थे।
अंजुरी में नीर भर कर, हर ओर उड़ाया करते थे।
गड्ढों में भरे पानी में, काग़ज़ की नाव चलाते थे।
कल्पना में उस पर बैठ हम, सारी दुनिया घूम आते थे।
कभी जो नीले अम्बर पर, इंद्रधनुष खिल जाता था।
जैसे कि मानो बच्चों को, कोहिनूर मिल जाता था।
साँवन भादों की बारिश में, अब भी ‘धरा’ नहाती है।
उम्र की बंदिश तोड़ कर, फिर से बच्ची बन जाती है।
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)