मेघों का इंतजार है
मेघों का इंतजार है
हाँ मेघों का इंतजार है
तपन भी है और जलन भी है
मिलन की वही एक लगन भी है
चाहत है दरकार है–मेघों का इंतजार है
धरा भी बहुत ही प्यासी है
गुलशन उपवन में भी उबासी है
हर प्राणी लाचार है–मेघों का इंतजार है
समीर भी गरम और मंद है
भानु का स्वरूप घना प्रचण्ड है
मौसम नागवार है–मेघों का इंतजार है
तरूवर की छाया सुहाती है
पर ये भी कितने दिन भाती है
हर पंछी बेजार है–मेघों का इंतजार है
ताल-तलैये सब सूख रहे हैं
कब होगा आना यही पूछ रहे हैं
पानी की तकरार है–मेघों का इंतजार है
दिन हो चाहे अब रैन है
‘V9द’ मन उद्विग्न है बेचैन है
बयार है ना बहार है–मेघों का इंतजार है
स्वरचित
V9द चौहान