मेघा कारे पिया पुकारे
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक
काले काले मेघ से, नयन तिहारे कजरारे ।
चैन ले गए मन का मेरे, नयन तिहारे कजरारे ।
मैया बापू भईया बहना बचपन ते समझाये
परदेसी के चक्कर में पड़ कर चैन दियो है गँवाय ।
मूरत उसकी भोली लागे जैसे सावन मेघ ।
भूल-भाल के काम हम अपना देने लागे नेग ।
बरखा रानी रस्ता रोके, ले छाता हम छत पे ।
टुकुर- टुकुर सहेली देखे, छप छप करती जल में ।
बस की मेरे बात जो होती, लेती झट से रोक ।
तीर प्रेम का लागा दिल में, रहा न कोई काबू ।
बिन रस्सी के बछिया जैसी फिरती मैं बेकाबू ।
बीच–बीच में बिजुरी चमके, गड़-गड़ करते मेघ।
डर के ऊपर प्रीत पिया की हिम्मत देती हमको ।
डोल रही हूँ एक झलक को, कैसे मन को साधूँ ।
रटते–रटते, रामा–रामा जीभ मेरी है अकड़ी ।
राह न सूझे दिशा न दीखे, हुई अचंभित लड़की ।
काले काले मेघ से, नयन तिहारे कजरारे ।
चैन ले गए मन का मेरे, नयन तिहारे कजरारे ।
मैया बापू भईया बहना बचपन ते समझाये
परदेसी के चक्कर में पड़ कर चैन दियो है गँवाय ।