मेघनाद ब्रम्हास्त्र कथा (चंपकमाला,भुजंगी,भुजंग प्रयात,छप्पय आदि छंद) द्वितीय किस्त
मेघनाद ब्रम्हास्त्र कथा
द्वितीय किस्त
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कुण्डलिया छंद
दोहा +रोला
शंकर जी का ध्यान धर,भृगू लगाई टेर।
शिष्य आपका दशानन,मचा रहा अँधेर।
मचा रहा अँधेर,शिष्य को सबक सिखाओ।
आशुतोष दे दरश,हरष भृगु के मन लाओ।
सुनके भृगु की टेर,तुरत प्रगटे प्रलयंकर।
नैन सैन आशीष दिया है भोलेशंकर।********************
चंपकमाला 10
भगण,मगण,सगण गुरू
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पा रुखभोले शंकर जीका।
मोद मनाता ध्येय मुनी का ।
देख सही मौंका ललकारा।
झोंक अभी जोधा बल सारा।
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भुजंगी11वर्ण
3यगण 1लघु 1गुरू
नहीं कामना है मुझे जंग की।
सुहाती नहीं बात यों व्यंग्य की।
बिना बात की बात जूझें नहीं।
किसी से कभी पंथ बूझें नहीं।
दिखा लाल आँखे डराओमती।
रहोगे सदा ही जती के जती।
करें आपसे युद्ध में सामना ।
रहेगी अधूरी नहीं कामना।
भुजायें बड़ी शक्तिशाली जहाँ।
मिलेगी कभी हार भी ना वहाँ।
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भुजंग प्रयात छंद 12
4 यगण
कभी जाय कैलाश मैंनेउठाया।
कभी देव जूझे लडें तो हराया।
कभी ना डरा मैं,अभी क्या
डरूँगा।
लड़ूँ द्वंद की नीत पूरी करूँगा।
झुका ना सके हैं मुझे चाँदतारे।
झुका ना सके हैं मुझे देवसारे।
लिया बांध मैंने शनीकाल को
भी।
मुझे ही झुकाने चले आप तो
भी।
बिना युद्ध के हार मानूँ नही मैं।
बिना तर्क के रार ठानूँ नहीं मैं।
कहाँ खो गए हो नहीं भ्राँति
पालो।
अरे श्रेष्ठ हूँ मैं अभी आज
मालो।
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छप्पय
बोले भृगुमुनि खूब,दियाअपना बल दरशा ।
जैसे गरजे मेघ,नहीं किंचित
जल बरसा।
फरसा फेकूं आप उठाकर उसको लाओ।
बिना लडें ही आज श्रेष्ठ जोधा कहलाओ ।
फिर विनय सहित भृगु शस्त्र
पर,
शिवजी दिये बिठाल हैं।
फेका लख सागर हट गया,
लेकर कई उछाल हैं।
2
भीड सुरों की लगी,भरा सागर का प्रांगण।
जोधा थे अनगिनत,देखने यह भीषण रण।
शिवजी के दो शिष्य,आपसी में टकराये ।
निर्णायक बन चतुर मुखी ब्रह्मा
भी आये।
नृप फरसा लेने को चला,करके घमंड सिर तानके।
हो चूर चूर क्षण मात्र में,घट आगे भगवान के।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
18/1/23