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17 Jun 2022 · 1 min read

में बहती धारा

में बहती धारा
—————-
मैं बहती धारा हूं, सागर में समा
जाती हूं ,
नदियों की तरह बहकर ,खुद रास्ता
बनाती हूं ।

ढूंढती हूं मांझी नौका पार लगाने को,
किनारा कोई नजर नहीं आता मुझको।

बीच मझधार है पतवार मेरी,
पथ कोई मिलता नहीं—
ढूंढती है साहिल को आंखें मेरी।

डगमग-डगमग नौका होती,
हृदय है बेहाल ।
पार लगा दो प्रभु नैया मेरी,
में हो जाऊं निहाल ।।

ऊंचे -ऊंचे पर्वतों से हिम पिघल रहे,
शबनम की “बूंदें,, बनकर
वृक्षों में दुबक रहे ।

समुंदर से आकर मिले,
बहती हुई नदियां ।
झरने भी झर-झर करते,
और पल्लवित वादियां!!

सुषमा सिंह*उर्मि,,

Language: Hindi
366 Views
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