मृत्यु
मृत्यु के बाद का जीवन , जीवन की मृत्यु से भी अधिक कष्टकारक होता है।मेरे ही सारे दुख अंततः इस बड़े दुख से हार गए।
नीरसता, सूनापन और पीड़ा क्या होती है , अब जाना।
जीवन दुख देता है , यातना देता है , हम उससे व्याकुल होकर यदा कदा कह देते है कि हमे जीवित क्यों रखा? किंतु मैं अब ऐसा कभी नहीं कहूंगी।
मैं चाहती हूं की मैं जीवित रहूं, हर कठिन घड़ी में भी..अंत तक जीवित रहू क्योंकि जाने वाले अपने पीछे छोड़ जाते है अनंत दुख, अनंत पीड़ा .. अपने प्रियजन के लिए , परिवार के लिए ,और सर्वाधिक दुख उस मां और पिता के लिए जो जीते है तो केवल संतान के लिए।
युवा संतान , गुणी, संस्कारी, गरीबी में खून पसीने से पली बढ़ी। जिसके अंदर जीवन कूट- कूट कर भरा हो,सपने और उमंगे आंखों में तैर रही हो ,
उसके विरुद्ध नियति का ऐसा वार हृदय को छलनी कर देता है, आदमी को तोड़ देता है..!
मैं इस दुख से लड़ रही हू।
मेरी बहन आजीवन हालातो से संघर्षरत रही, पर कभी उसने मृत्यु न मांगी, न कभी घबराई , न डरी। ऐसे ऐसे असफल हुई मानो नियति ने साजिश रची हो।
मेहनती, प्रतिभावान, हरफनमौला , आत्मविश्वासी, आशावान, सुंदर ।
व्यक्तित्व का ऐसा कौन सा गुण था जिससे वो हीन थी ?
समय का पहिया सदैव विपरीत ही घूमता रहा ,पर उसने कभी रोना नहीं रोया।
मेहनत में कमी है ये सोचकर खुद को घिसा,चमका लिया और जब उस चमक से जमाने में रोशनी फैलाने का वक्त आया तो ईश्वर ने नाइंसाफी कर दी ।हमारे साथ नही ,हर उस अंधेरे के साथ जिसे वो रोशन करती , हर उस जीवन के साथ जिसे वो बदल देती, उन मां बाप के साथ जिसने कभी किसी के साथ गलत न किया , उस भाई के साथ जिसकी सांसे ही अपनी बहन को देख कर चलती थी और उस बहन के साथ जिसका जन्म से एकमात्र सहारा वही थी , उसी के कारण ही वह थी ,बिना उसके खोखली रह गई।
शरीर रह गया प्राण चले गए।
शब्दों में इतनी ताकत नहीं जो मां बाप की पीड़ा लिख सके , न किसी भी सहानुभूति में इतनी शक्ति है ।
जीवन का हर आनंद ,हर सुख ,इस दुख के आगे अर्थहीन और ओछा नजर आता है ।
हर त्योहार खोखला लगता है और हंसी तो चाहे जिसकी हो तलवार सी चुभती है, उजड़ते हुई दुनिया का दृश्य ऐसा है की इसे हर सुकून से बैर है।
सुख की चाहत थी,और अब सुख की आहट भी खिजाती है । मृत्यु देखी नही आज तक और देखी तो इतने निकट से, बहुत शिकायते है ईश्वर से,
मैने देखा है अंधेरा प्राय जब भी आया जीवन ने उजाला मांगा है सबने पर ये घड़ी ऐसी है की काली राते ही जीवन का यथार्थ बन चुका है ,रोशनी पीड़ा बढ़ाती है ,
खुशी भी दुख देती है।
जिसने इस मृत्यु को देख लिया उसको क्या देखना बाकी रह जाता है फिर…