‘मृत्यु’
मृत्यु सहचरी सबकी है,
बेवफाई नहीं करती है।
मिलने अगर वो आ जाए,
लेकर साथ ही जाती है।
कब आएगी कहाँ आएगी?
चुनकर किसको ले जाएगी।
ये भेद सदा ही छुपाती है,
वो पहले नहीं बतलाती है।
लाख यत्न चाहे कोई करले,
बचने की हजार कोशिश कर ले।
हो वीर कोई या वैद्य चिकित्सक,
सबको बाहों में वो भर ले।
भेद भाव नहीं करती है,
हर प्राणी पर मरती है।
शीघ्र किसी से मिलती है,
कभी देरी भी करती है।
वो ही सच्ची महबूबा है,
मार्ग न उसका दूजा है।
ना सूरत है ना मूरत है,
कोई न भाई-भतीजा है।
©® GN