मृत्यु -सुंदरी (कविता)
मृत्यु सुंदरी (कविता)
हे मुक्ति की देवी !हे सुंदरी !
पिलाकर प्राणी को तुम ,
मुक्ति से भरा प्याला ,
चिरनिंद्रा में सुला देती हो।
जन्म -जन्म के दुखों से ,
संसार के क्षणिक सुखों से उबार देती होें।
अपने श्याम से केस खोले ,
नयनो में अप्रतिम स्नेह घोले,
अपना श्वेत आँचल ओढा देती होें।
बिना किसी ख़त-पट के ,
बिना सर-पट ,शीघ्रता के ,
धीरे से हमें उठा इ जाती होें।
इस अशांत जगत से ,
इसके मायाजाल से ,
दूर ;बहुत दूर हमें ले जाती होें।
ले जाती हो फिर उसपार ,
जहाँ है परमान्द अपार ,
हमें हमारे निज घर तक पहुंचाती होें।
जहाँ रहते हैं हमारे परम पिता परमात्मा ,
जिनका अविभाजित अंश है हमारी आत्मा ,
उनसे मिलवाकर बहुत उपकार करती होें।
यह दुनिया चाहे कितना भी कहे बुरा,
मगर तुम्हारे बिना यह जीवन है अधूरा,
मरकर भी अमर रहने का पाठ भी तो
तुम्हीं हमें पढ़ाती होें।
सही अर्थ में तुम हमारी शत्रु नहीं,
हमारी परम मित्र होें।
जो हमें जीवन का मूल्य समझती हें।