*मृत्यु (सात दोहे)*
मृत्यु (सात दोहे)
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1)
सबको ही ढोना पड़ा, अपने तन का भार
केवल मुर्दे को चले, लेकर कंधे चार
2)
वृद्धावस्था भाग्य में, आते सबको रोग
बारी-बारी भोगते, मर्त्य-लोक का भोग
3)
सब की गति है एक-सी, सबका मरण समान
घिसे-पिटे कारण वही, चलने को शमशान
4)
दो दिन का यौवन रहा, दो दिन के धनवान
तन होता निष्प्राण फिर, चला लेट शमशान
5)
एकाएक गए कई, कुछ के लंबे रोग
महाकाल ने पाश में, बॉंधे सारे लोग
6)
तेरा-मेरा कर रही, जब तक जीवित देह
यहीं धरा सब रह गया, जिससे गाढ़ा नेह
7)
किसने जाना देह के, भीतर जीवित कौन
मरने पर भी जो रहा, शाश्वत मुखरित मौन
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451