मृत्यु भोज!
जिस आंगन में पुत्र शोक से, बिलख रही माता।—-वहां पहुंच कर स्वाद जीभ का तुमको कैसे भाता।—–पति के चिर वियोग व्याकुल युवती विधवा होती है।—-बड़े चाव से पंगत खाते,क्या? तुम्हें पीड़ा नही होती है।——-+++—————+-मरने वाले के प्रति अपना सद व्यवहार निभाओ। धर्म यह कहता है, मृत्यु भोज मत खायो।—चला गया छोड़ कर संसार, जिसका पालन हारा । पड़ा चेतना हीन ब्रजपात दे मारा।—–खुद भूखे रहकर परिजन समाज को खिलाते हैं।अंधी परम्परा के कारण जीतें जी मर जाते हैं।इस कुरीति के उन्मूलन का साहस कर दिखलाओ।धर्म यही कहता है बंधु मृत्यु भोज मत खाओ।