मृत्यु पर विजय
दस साल का नन्हा सा मासूम वैभव अपने दादाजी से कहानियां सुनने का आदी था, उसके दादाजी हर रोज उसे अच्छी मनोरंजक और प्रेरक कहानियां सुनाते थे।
आज उसके दादाजी ने उसे आध्यात्मिक ज्ञान देने के उद्देश्य से दैत्यों को मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए ब्रह्माजी की तपस्या करने और अमरता के वरदान के स्थान पर अतुल्य शक्ति पाकर देवताओं से युद्ध करके अपना ही विनाश कर लेने की कहानी सुनाई थी।
जब से उसने अपने दादाजी से ये कहानी सुनी थी तबसे उसके मासूम दिमाग में एक ही प्रश्न उमड़ रहा था, कि क्या सचमुच में कोई मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है या फिर ये एक कल्पना मात्र है।
अब उसने इस बारे में अपने दादाजी से ही पूछने की सोची क्योंकि वो अपने दिमाग में उठने वाले हर सवाल का जवाब अपने दादाजी से ही पूछा करता था और उसके दादाजी भी उसे जवाब देकर उसकी जिज्ञासा शांत कर दिया करते थे।
मासूम वैभव अपना सवाल लेकर पहुंच गया था अपने दादाजी के पास, जहां उसके दादाजी ने उसे प्यार से अपने पास बिठाया और उससे बोले, बोलो बेटा कुछ पूछना चाहते हो क्या जो ऐसे अशांत लग रहे हो।
वैभव बोला दादाजी मुझे जानना है कि कोई मृत्यु पर विजय प्राप्त कैसे कर सकता है? इस पर उसके दादाजी मुस्कुराए और बोले बेटा! मृत्यु तो जीवन का यथार्थ सत्य है…..वो किसी के टाले नहीं टल सकती……जीवन और मृत्यु एक पहिए के दो पहलू हैं और ये निश्चित है।
दादाजी के इस जवाब को सुनकर अब मासूम वैभव उदास सा दिखने लगा तो उसके दादाजी ने फिर से बोला बेटा! ये सत्य है कि मृत्यु टाले नहीं टल सकती, लेकिन इंसान को अपने जीवन में ऐसे अच्छे कार्य करने चाहिए जिससे मृत्यु के बाद भी दुनिया में उसे याद किया जाए और उसका नाम लिया जाए।
इस तरह से इंसान तो मरकर खत्म हो जाता है लेकिन उसके अच्छे कर्मों से उसका नाम अमर हो जाता है और यही है असली “मृत्यु पर विजय”……..
✍️मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, छत्तीसगढ़ मो.नं.9827597473