*मृत्यु : चौदह दोहे*
मृत्यु : चौदह दोहे
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(1)
आई अंतिम साँस जब ,पाया चिर विश्राम
कष्टों का लो हो गया ,ऐसे काम तमाम
(2)
सबसे अच्छा है मरण ,बूढ़ेपन के बाद
बचपन यौवन में हुआ ,देता है अवसाद
(3)
जग में जो पैदा हुआ ,मरता है दिन एक
क्या धन ज्यादा जोड़ना ,बँगले व्यर्थ अनेक
(4)
चिता जली तो रह गई ,मटकी भरकर राख
इतनी तन की हैसियत ,इतनी तन की साख
(5)
पुनर्जन्म का अर्थ है ,आत्म-तत्व अविराम
बदल-बदल कर देह को ,चलना इसका काम
(6)
पूर्व – जन्म में भी हुए , नाते – रिश्तेदार
अब पिछला भूले सभी ,जन्म-मृत्यु सौ बार
(7)
कट जाएँ प्रभु पाप सब ,इसी जन्म में एक
नए न बंधन में फँसें ,कर दो जीवन नेक
(8)
जीवन को जैसा जिया ,वैसा ही परलोक
तीजा दसवाँ सतरही ,यह समाज का शोक
(9)
जीवन हम ऐसा जिएँ ,मिले आत्म-कल्याण
रहे न कोई वासना , जब हो परम – प्रयाण
(10)
जीना मरना आँख का ,समझो खुलना-बंद
बार-बार क्रम चल रहा , समझें केवल चंद
(11)
पिछले जन्मों की कहाँ ,किसको कैसी याद
सब भूले इस जन्म को ,देह-मृत्यु के बाद
(12)
मरने में अचरज नहीं ,जग से जाते लोग
कारण सबके एक से ,दुखद वही संयोग
(13)
पैदा होकर क्या किया ,जोड़ी सिर्फ जमीन
मरे यहीं पर रह गई , वही ढाक के तीन
(14)
अंतिम साँसें इस तरह ,देतीं कष्ट अपार
जैसे पर्वत पर चढ़े ,चूहा लेकर भार
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तीजा दसवाँ सतरहीं = मृत्यु के उपरांत तीसरे ,दसवें और सत्रहवें दिन शोक मनाने की परंपरा
ढाक के तीन = ढाक के तीन पात नामक प्रसिद्ध कहावत जिसका अर्थ स्थितियों का ज्यों का त्यों रह जाना होता है
परम प्रयाण = मृत्यु
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451