” क्या सुख ? क्या दुख ? “
” क्या सुख? क्या दुख ? ” ©
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मौत का मंजर भी कितना अजीब है |
क्या सही में ये कोई दुख जताने की चीज है ?
क्यूँ रो रहे हो भाई, क्या दुख है ?
देखो तो सही, हर तरफ सुख ही सुख है |
मानो तो फिर, हर तरफ दुख ही दुख है |
सही मायनों में ना दुख है ना सुख है |
क्यूँ तु इस अटल सत्य से विमुख है ?
ये शरीर तो नश्वर है आत्मा ही तो प्रमुख है |
ये तो हमारी भावनाओं का ही बनाया रुख है |
जो देता कभी सुख तो देता कभी दुख है |
जितनी तीव्रता भावनाओं में होगी |
उतनी ही तीव्रता से सुख और दुख के बादल उमड़ेंगे |
हर दुख का कारण भोगा हुआ वो सुख हैं |
और हर सुख का कारण भोगा हुआ दुख हैं |
लगाव सुखी करता हैं
और अलगाव दुखी करता हैं |
हर दुख का कारण वो लगाव हैं
अंततः मिलता भी तो अलगाव हैं |
इस जीवन में सुख एक उछाल हैं |
तो दुख एक गिराव हैं |
जरुरत हैं तो स्थिरता की
जो सुख दुख से कोसों परे हैं |
अब बताओ कहाँ है सुख ?
और कहाँ दुख है ?
ना कोई सुख हैं ना ही कोई दुख हैं |
ये तो सिर्फ अपनी भावनाओं का रुख हैं |
जो देता कभी सुख तो देता कभी दुख हैं |
मौजूद है तो सिर्फ शांति और शून्यता….
और कर्म प्रधान पुण्यता….
मिलेगी तो सिर्फ हम सबकी आत्मा
और सामने होगा हमारा परमात्मा
सुख और दुख से कोसों परे
सिर्फ परमशान्ति को साथ धरे |
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स्वरचित एवं
मौलिक रचना
लेखिका :-
©✍️सुजाता कुमारी सैनी “मिटाँवा”
लेखन की तिथि :-7 जून 2021