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28 Aug 2023 · 1 min read

मृगतृष्णा 2

मृगतृष्णा 2

मृगतृष्णा वश मिरगा घुमय
बन बन ढुढै घास
निज पत्नी को छोड़ पुरूष
जो चले पराये पास

मन लोभी हैं, लालच पड़े
मक्खी पराये जान
रोग अनेक हैं,उपज पड़ेगा
निज को रोगी जान

नही रहेगा खैर कहीं
निज पत्नी को छोड़
आदिशक्ति है निज पत्नी
बंचक नार संग छोड़

न हुई कभी निज पति का
कैसे होगी तेरा यार
मृगतृष्णा में भटकत फिरै
झुठा है इनका प्यार

काल स्वरूपा हैं कालिका
न रहे इसे कुछ ज्ञान
मान मर्यादा सम्मान बेचकर
निर्लज्ज नार पहचान

वक्त पड़े पर निकल पड़ेगी
बनकर तेरा काल
नही रहेगी फिर प्रेमिका
निकाल लेगी खाल

सावधान रह पुरूष जनों
करत विजय प्रणाम
मृगतृष्णा है वासना
निज पत्नी ही पहचान

डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

Language: Hindi
1 Like · 112 Views
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