मृगतृष्णा
जिंदगी की अड़चनों से
शूलसिंचित धड़कनों से
मुझसे तुमको मिला न पाई
उन अपरिमित अनबनों से
वेदना के करुण स्वर का भार लेकर क्या करूँ।
बिन तुम्हारे व्यर्थ का उपहार लेकर क्या करूँ।।
ह्रदयों के अद्भुत खेल में
सूना पड़ा मधुमास है
मुझसे हवाएं पूछतीं
ये व्यर्थ कैसी आस है?
विरह में लिपटा हुआ मधुमास लेकर क्या करूँ?
और तुम बिन व्यर्थ की मैं आस लेकर क्या करूँ?
~ऋषभ पाण्डेय